डॉ. उदित राज (पूर्व आईआरएस), असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) के राष्ट्रीय चेयरमैन और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वे 2014 से 2019 के बीच उत्तर पश्चिमी दिल्ली का प्रतिनिधित्व करते हुए लोकसभा में सांसद रहे। वे दलित, ओबीसी, मॉइनोरिटीस एवं आदिवासी संगठनों का परिसंघ (डोमा परिसंघ) के भी राष्ट्रीय चेयरमैन हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. उदित राज का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के राम नगर गांव में श्री कल्लन सिंह और श्रीमती सुख देई के घर हुआ था। मां अशिक्षित थीं और पिता भूतपूर्व सैनिक थे और उन्होंने बहुत पहले ही नौकरी छोड़ दी थी। उनके पास बहुत कम ज़मीन थी, जो परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं थी। उनके बड़े भाई अपने पैतृक स्थान पर रहते हैं और छोटे भाई कालीचरण- भूतपूर्व विधायक लखनऊ में रहते हैं। उनकी दो छोटी बहनें हैं। जिस गांव में उनका जन्म हुआ, वह सड़क और बिजली से जुड़ा नहीं था और एक तरह से यह अभी भी बहुत ही पिछड़ा गांव था। डॉ. उदित राज का नाम पूर्व में राम राज था। उनके पास बहुत कम अवसर थे। वे पढ़ाई में औसत थे लेकिन अपनी ईमानदारी और जिज्ञासु दिमाग के लिए जाने जाते थे। गांव के अपने समकालीनों द्वारा उन्हें क्रूर और सीधे-सादे व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, वे कहते हैं कि कोई भी उनसे भिड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता था क्योंकि वे हमेशा सच्चाई के लिए खड़े रहते थे। उनके माता-पिता कई बार दुखी होते थे, जब डॉ. उदित राज दूसरों के विवादों में हस्तक्षेप करते थे और ज्यादातर उन छात्रों का साथ देते थे जो कमजोर थे और उत्पीड़न और भेदभाव के शिकार थे। माता-पिता उनके बारे में टिप्पणी करते थे कि उन्हें झगड़े और हंगामा करना पसंद है। पूछे जाने पर डॉ. उदित राज के पास कोई जवाब नहीं था कि वे अपने और परिवार के लिए समस्या क्यों बनाते थे। अब वे इसका स्पष्टीकरण देते हैं कि मन में न्याय की भावना के कारण ऐसा स्वाभाविक था। जब उनसे पूछा गया कि वे किस लिए अपनी जान जोखिम में डालते थे तो वे अतीत को याद करते हुए कहते हैं कि जब भी वे अन्याय होते देखते थे तो यह बहुत ही सहज प्रतिक्रिया होती थी। अपने पैतृक स्थान - लाला राम लाल अग्रवाल कॉलेज सिरसा, इलाहाबाद में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सके क्योंकि वे मजदूरों और किसानों के आंदोलन में शामिल हो गए थे। इन सामाजिक गतिविधियों के कारण वे विश्वविद्यालय नहीं जा पाए और फिर उन्हें 1980 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली जाने की सलाह दी गई। उन्होंने पांच साल के एकीकृत पाठ्यक्रम में जर्मन भाषा में दाखिला लिया और यहां भी वे राजनीति में शामिल होने से खुद को नहीं रोक पाए और स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया का हिस्सा बन गए। कॉलेज के दिनों से ही वे कई सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल रहे, जिसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें सामाजिक गतिविधियों से अपना ध्यान हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक समय ऐसा भी था जब ठीक से खाना नहीं मिलता था और भूखे सोना पड़ता था। सर्दियों के कपड़े सेकेंड हैंड और अपर्याप्त थे। रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए दिन जेएनयू की लाइब्रेरी में बीतता था और देर रात किसी दोस्त के घर सो जाते थे, फिर दूसरे दिन जल्दी उठकर लाइब्रेरी भागना पड़ता था। सिविल सेवाओं की तैयारी ऐसे ही किया। वे आजीविका के लिए ट्यूशन पढ़ाते थे। उन्होंने 1988 बैच की सिविल सेवा परीक्षा पास की और प्रतिष्ठित भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के लिए चुने गए। वर्ष 1990 में उनकी पहली पोस्टिंग गाजियाबाद में सहायक आयकर आयुक्त के पद पर हुई थी। वर्ष 1995 में उनका तबादला दिल्ली में हुआ, जहां उन्होंने आयकर उपायुक्त, संयुक्त आयुक्त और अतिरिक्त आयकर आयुक्त के प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया। वर्ष 2003 में उन्होंने सेवा से त्यागपत्र दे दिया।

एम.ए. और एल.एल.बी. की डिग्री के अलावा, उन्हें समाज सुधार और जातीय भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में उनके योगदान के लिए डॉक्टरेट ऑफ यूमैनिटीज़ की उपाधि से सम्मानित किया गया है। उनकी बौद्धिक कुशाग्रता को न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है। वे मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों तथा अन्य परोपकारी और व्यापारिक संगठनों में भाग लेते रहे हैं और संवाद करते रहे हैं। वे भारत और कई अन्य देशों के बीच वाणिज्य और व्यापार के सूत्रधार हैं।

वे एक प्रसिद्ध लेखक भी हैं और अब तक विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में उनके सैकड़ों लेख प्रकाशित हो चुके हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों के लिए कोई संगठन नहीं था, वे संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।

निजी जीवन
राष्ट्रीय प्रत्यक्ष कर अकादमी में प्रशिक्षण के दौरान उनकी मुलाकात सुश्री सीमा बहल से हुई। एकदूसरे की समान विचारधारा और दृष्टिकोण से करीब आए और उन्होंने 1990 में विवाह कर लिया। श्रीमती सीमा राज प्रिन्सपल डायरेक्टर जनरल ऑफ इनकम टैक्स के पद से रिटायर हैं। उनका एक बेटा अभिराज और एक बेटी सवेरी है।

महत्वपूर्ण उपलब्धियां
वर्ष 1997 में सरकार द्वारा आरक्षण विरोधी पांच आदेश जारी किए गए जिससे देश में हाहाकार मच गया। देश भर से विभिन्न सरकारी विभागों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) संगठनों सहित सामाजिक कार्यकर्ताओं और अम्बेडकरवादियों ने एक साथ मिलकर एससी/एसटी संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ बनाया। उन्हें सर्वसम्मति से इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। उनके नेतृत्व में पूरे देश में आरक्षण विरोधी आदेशों के खिलाफ विभिन्न अभियान चलाए गए और प्रदर्शन किए गए। 1997, 1998, 1999 और 2000 के दौरान दिल्ली में विभिन्न राष्ट्रीय स्तर की रैलियां आयोजित की गईं। 11 दिसंबर 2000 को राम लीला मैदान नई दिल्ली में सदी की सबसे बड़ी रैली हुई। पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह, हरकिशन सिंह सुरजीत, चंद्रजीत यादव, बूटा सिंह आदि ने इसमें भाग लिया और रैली के आकार को देखते हुए उन्होंने डॉ. उदित राज को भविष्य का प्रधानमंत्री बताया। उस समय डॉ. उदित राज को राम राज के रूप से जाना जाता था। 4 नवंबर 2001 को उन्होंने लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया और नाम बदलकर उदित राज रख लिया। उदित का अर्थ है “उदय”, राज पहले से ही प्रत्यय था और यह न केवल उनका अपना निर्णय था बल्कि लाखों लोगों का समर्थन था। यह उनके प्रयासों के कारण था कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 81वें, 82वें और 85वें संवैधानिक संशोधन को पारित किया, जिसके परिणामस्वरूप आरक्षण का लाभ पुनः प्राप्त हुआ। डॉ. अंबेडकर के नक्शेकदम पर चलते हुए, डॉ. उदित राज हिंदू जाति व्यवस्था से मुक्त होकर जातिविहीन समाज के निर्माण के लिए ईमानदारी से प्रयास किया। आरक्षण विरोधी आदेशों को रद्द करवाने और बौद्ध दीक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए लड़ाई शुरू की और अपने संघर्ष के कारण बाद में देशव्यापी संघर्ष किया। 2003 में उन्होंने राजनीतिक पार्टी – इंडियन जस्टिस पार्टी बनाकर राजनीति में कदम रखा। 2007 में उन्होंने यूपी विधानसभा चुनावों के लिए 100 से अधिक उम्मीदवार खड़े किए और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने उस समय उनसे ख़तरा महसूस किया और उनकी कड़ी आलोचना की। उन्हें मायावती और रामविलास पासवान के बाद देश के तीन शीर्ष दलित नेताओं में से एक माना जाता है।

2014 में डॉ. उदित राज भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और उत्तर पश्चिमी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से सांसद बने। एक सांसद के रूप में उन्होंने आरक्षण और दलित मुद्दों पर सांसद में इतने मुद्दे उठाए जितने सभी दलित सांसद मिलकर अभी तक उठाते होंगें। संसद में बेखौफ तरीके से उठाए गए मुद्दों से भाजपा परेशान थी, इसलिए 2019 में जब उन्हें लोकसभा का टिकट नहीं दिया गया और उन्हें राज्यसभा भेजने या अन्यत्र समायोजित करने की बात हुई तो वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए।

न्याय के योद्धा
डॉ. उदित राज संयुक्त राष्ट्र संघ, जिनेवा में दलितों और वंचितों के मुद्दों को उठाते रहे हैं। वे बुद्ध एजुकेशन फाउंडेशन और दलित इंटरनेशनल फाउंडेशन के भी अध्यक्ष हैं। 1997 से लगातार उन्होंने लाखों वंचित लोगों के मुद्दों को उठाया और उनमें से काइयों का समाधान भी हुआ। उन्होंने 2006 में उच्च शिक्षण संस्थानों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की मांग के लिए एक अभियान चलाया। 2006 में जब समाजवादी पार्टी ने किसानों से जमीन अधिग्रहीत कर रिलायंस कंपनी को आवंटित की, तो इस जमीन को वापस दिलाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री श्री वी.पी. सिंह के नेतृत्व में एक अभियान शुरू किया गया। डॉ. उदित राज ने इस आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके कार्यान्वयन के खिलाफ गिरफ्तारी दी। उन्होंने दिल्ली विश्व विद्यालय में चार वर्षीय डिग्री कोर्स (एफवाईयूपी) पाठ्यक्रम के खिलाफ भी संघर्ष किया, जिसे बाद में समाप्त कर दिया गया क्योंकि यह शिक्षा के लिए हानिकारक होता।

लिंग भेद के खिलाफ योद्धा
देश को महान और वैश्विक शक्ति बनाने के लिए सबसे पहले लिंग भेद और जाति भेद के दो बड़े मुद्दों पर ध्यान देना होगा, जिससे एक महान राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त होगा। अगर महिलाओं के लिए शुद्धता महत्वपूर्ण है तो पुरुषों के लिए भी यही मानदंड क्यों नहीं लागू होते। जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित किए बिना कोई भी देश महान नहीं बन सकता। अनुसूचित जाति/जन जाति और पिछड़े वर्ग की एक बड़ी आबादी को जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों से अलग करके, चाहे वह अर्थव्यवस्था हो, शिक्षा हो, उद्योग हो, बाजार हो, कला और संस्कृति हो, राजनीति हो, राष्ट्र का विकास और सद्भावना संभव नहीं है। अवसर के बिना कोई अपनी योग्यता साबित नहीं कर सकता। कोई भी व्यक्ति जन्म से मूर्ख या प्रतिभाशाली नहीं होता और यह अवसर की बात है जो योग्यता और अयोग्यता निर्धारित करती है।