डॉ. उदित राज के नेतृत्व में श्रम शक्ति भवन, नई दिल्ली पर सरकार द्वारा लागू चारों श्रम संहिताओं के विरोध में प्रदर्शन किया गया

22 Nov, 2025

नई दिल्ली, 22 नवंबर, 2025.
आज डॉ. उदित राज (पूर्व सांसद), राष्ट्रीय चेयरमैन, असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) के नेतृत्व में श्रम शक्ति भवन, नई दिल्ली पर आज से लागू श्रम संहिताएं (Labour Codes) के विरोध में प्रदर्शन किया गया और इनकी प्रतियां जलायीं गईं। जिसमें केकेसी के पदाधिकारी – जैसे- राष्ट्रीय वाइस चेयरमैन श्री रमेश यादव एवं राष्ट्रीय वाइस चेयरमैन श्री संजय गाबा, राष्ट्रीय सचिव श्री शाहिद अली, राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर सी.पी. सोनी, रीजनल कोऑर्डिनेटर डॉ. अंशु एंथनी जी, दिल्ली प्रदेश चेयरमैन श्री विनोद पवार, हरियाणा प्रदेश चेयरमैन श्री नरेश मलिक सहित दर्जनो पदाधिकारी और सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल हुए।
प्रदर्शन को संबोधित करते हुए डॉ. उदित राज जी ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा लाए गए चारों श्रम संहिताएं (Labour Codes) — औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code), ओएसएच कोड (Occupational Safety, Health Code Code), सामाजिक सुरक्षा संहिता (Social Security Code) और वेतन संहिता (Code on Wages)— ज़मीन पर पूरी तरह विफल, मज़दूर-विरोधी और केवल कॉरपोरेट-हितैषी साबित हुए हैं। इन संहिताओं ने दशकों के संघर्ष से प्राप्त मज़दूरों के अधिकारों को छीन लिया है, नौकरी की सुरक्षा खत्म कर दी है और 90% से अधिक कार्यबल (असंगठित क्षेत्र) को भ्रम की स्थिति में धकेल दिया है।
1. औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (Industrial Relations Code, 2020)
'हायर एंड फायर' (Hire & Fire) को कानूनी मान्यता — नौकरी की सुरक्षा खत्म
यह कोड आज़ाद भारत के इतिहास में नौकरी की सुरक्षा Job Security पर सबसे बड़ा हमला है।
•मनमानी छंटनी की छूट: अब 300 कर्मचारियों तक वाली कंपनियों को कर्मचारियों को नौकरी से निकालने (Retrenchment/Layoff) के लिए सरकार की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है। पहले यह सीमा 100 कर्मचारियों की थी। इससे पिछले 30 वर्षों में नौकरी की सुरक्षा सबसे निचले स्तर पर आ गई है।
•यूनियनों पर शिकंजा: ट्रेड यूनियन बनाने और मान्यता प्राप्त करने के नियमों को इतना सख्त कर दिया गया है कि मज़दूरों की सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining) की ताकत खत्म हो गई है।
•हड़ताल (Strike) करना असंभव: किसी भी हड़ताल से पहले 60 दिन का नोटिस देना अनिवार्य कर दिया गया है। जब तक मामला सुलह (Conciliation) में है, हड़ताल को अवैध माना जाएगा। यानी, विरोध का अधिकार छीन लिया गया है।
•फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट (Fixed-term Employment): स्थायी नौकरियों को खत्म कर 'फिक्स्ड टर्म' (निश्चित अवधि) की नौकरियों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे भविष्य की सुरक्षा खत्म हो जाएगी।
औद्योगिक संबंधों को 'मज़दूर-अधिकारों' से हटाकर 'कॉरपोरेट-सुविधा' पर शिफ्ट कर दिया गया है। मज़दूर की आवाज़ को सुनियोजित तरीके से दबाया गया है।
2. ओएसएच कोड, 2020 (Occupational Safety, Health Code, 2020)
कमजोर सुरक्षा तंत्र — मज़दूर की जान से ऊपर कॉरपोरेट का लचीलापन
यह कोड कार्यस्थल पर सुरक्षा (Occupational Safety, Health) के कड़े नियमों को खत्म कर मालिकों को मनमानी छूट देता है।
•निरीक्षण (Inspection) तंत्र ध्वस्त: 13 पुराने और मज़बूत कानूनों को हटाकर एक बेहद ढीला ढांचा लाया गया है। 'इंस्पेक्टर राज' खत्म करने के नाम पर मज़दूरों को खतरनाक स्थितियों में छोड़ दिया गया है।
•300 कर्मचारियों तक कोई सख्ती नहीं: छोटे और मझोले कारखानों (300 कर्मचारियों तक) को कड़े सुरक्षा निरीक्षण से बाहर रखा गया है, जिससे वहां काम करने वालों की सुरक्षा से समझौता किया गया है।
•महिला सुरक्षा अस्पष्ट: महिलाओं के लिए नाइट शिफ्ट (Night Shifts) की अनुमति तो दे दी गई, लेकिन एस्कॉर्ट, ट्रांसपोर्ट और सीसीटीवी (CCTV) जैसे सुरक्षा उपायों का कोई ठोस और अनिवार्य मॉडल लागू नहीं किया गया है।
(P.T.O.)
•ठेका मज़दूरों (Contract Labour) की निगरानी खत्म: आउटसोर्सिंग बढ़ेगी, लेकिन ठेका मज़दूरों की सुरक्षा और स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं होगा।

सुरक्षा और स्वास्थ्य नियमों को कमजोर कर कॉरपोरेट के लिए 'लचीलापन' बढ़ाया गया है। यहां मज़दूर की सुरक्षा को उनका 'अधिकार' नहीं, बल्कि कंपनी की 'लागत' समझा गया है।

3. सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (Social Security Code, 2020)
पहचान मिली, पर अधिकार नहीं — 90% मज़दूरों के पास कोई सुरक्षा नहीं
असंगठित क्षेत्र के लिए यह कोड केवल कागजी खानापूर्ति साबित हुआ है।
•गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स (Gig Workers) अधर में: डिलीवरी बॉयज़ और ऐप-आधारित कर्मचारियों के लिए फंडिंग, योगदान और बीमा का कोई स्पष्ट मॉडल नहीं है। वे न कर्मचारी माने गए, न ही उन्हें पूर्ण सुरक्षा मिली।
•ESIC/EPFO विस्तार रुका: ज़मीन पर नियमों (Rules) के अभाव में सामाजिक सुरक्षा (ESIC/EPFO) का विस्तार ठप पड़ा है।
•असंगठित मज़दूर — सिर्फ रजिस्ट्रेशन: करोड़ों असंगठित मज़दूरों का केवल पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन हो रहा है, लेकिन उन्हें कोई कानूनी गारंटी या लाभ नहीं मिल रहा है।
•कल्याणकारी बोर्ड (Welfare Boards) निष्क्रिय: निर्माण मज़दूरों और अन्य वर्गों के लिए बने कल्याणकारी बोर्डों की भूमिका को सीमित कर दिया गया है, जिससे पोर्टेबिलिटी और लाभ रुक गए हैं।
सामाजिक सुरक्षा को 'संवैधानिक अधिकार' के बजाय एक 'डेटा एंट्री एक्सरसाइज' बना दिया गया है। देश के 90% मज़दूरों को सुरक्षा के नाम पर सिर्फ एक आईडी कार्ड (Identity) दिया जा रहा है, हकीकत में कुछ नहीं।
4. वेतन संहिता, 2019 (Code on Wages, 2019)
कॉरपोरेट-संचालित वेतन मॉडल — कीमत मज़दूर चुका रहे हैं
सरकार का दावा था कि इससे वेतन सुधरेगा, लेकिन वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है।
•हाथ में आने वाला वेतन (In-hand Salary) कम: नए नियम के अनुसार बेसिक सैलरी कुल वेतन का 50% या उससे अधिक होनी चाहिए। इससे पीएफ (PF) योगदान तो बढ़ेगा, लेकिन कर्मचारियों, विशेषकर युवाओं और मध्यम वर्ग की 'टेक-होम सैलरी' (Take-home salary) में भारी कटौती होगी।•भत्ते (Allowances) कटे, भ्रम बढ़ा: 'वेतन' की एक जटिल परिभाषा ने पूरी सैलरी स्ट्रक्चरिंग को उलट-पुलट कर दिया है, जिससे कर्मचारियों के भत्ते कम हो रहे हैं और भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
•MSME पर अनुपालन (Compliance) का बोझ: छोटे उद्योगों (MSME) पर अतिरिक्त लागत और डिजिटल अनुपालन का बोझ इतना बढ़ गया है कि उनके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है।
यह पूरा वेतन ढांचा 'मज़दूर-केंद्रित' न होकर 'कॉरपोरेट-केंद्रित' है। इसमें कंपनियों को तो नियमों में स्पष्टता का फायदा मिला, लेकिन मज़दूर की जेब हल्की कर दी गई।
भाजपा सरकार के ये लेबर कोड "सुधार" नहीं, बल्कि मज़दूरों को बंधुआ बनाने और कॉरपोरेट घरानों को कानून से ऊपर रखने का प्रयास हैं। हम मांग करते हैं कि इन मजदूर-विरोधी संहिताओं को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।